माता दुर्गा मानस पूजा स्तोत्र Mata Durga Manas Puja (मराठी अर्थासह With Audio File)

।। नमस्कार जय महाराष्ट्र ।।

अनुक्रम दाखवा

दुर्गा मानस पूजा स्तोत्र (Mata Durga Manas Puja) :

उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।” आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥

मराठी अर्थ :

माता त्रिपुरसुन्दरी ! तुम भक्तजनों की मनोवांछा पूर्ण करने वाली कल्पलता हो । माँ ! यह पादुका आदरपूर्वक तुम्हारे श्रीचरणों में समर्पित है , इसे ग्रहण करो । यह उत्तम चन्दन और कुंकुम से मिली हुई लाल जल की धारा से धोयी गयी है । भाँति – भाँति की बहुमूल्य मणियों तथा मूँगों से इसका निर्माण हुआ है और बहुत – सी देवांगनाओं ने अपने कर – कमलों द्वारा भक्ति पूर्वक इसे सब ओर से धो – पोंछकर स्वच्छ बना दिया है …..॥१॥

देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्। एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं । गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥

मराठी अर्थ :

माँ ! देवताओं ने तुम्हारे बैठने के लिये यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है , इस पर विराजो । यह वह सिंहासन है , जिसको देवराज इन्द्र आदि भी पूजा करते हैं अपनी कान्ति से दमकते हुए राशि – राशि सुवर्ण से इसका निर्माण किया गया है । यह अपनी मनोहर प्रभा से सदा प्रकाशमान रहता है । इसके सिवा , यह चम्पा और केतकी की सुगन्ध से पूर्ण अत्यन्त निर्मल तेल और सुगन्ध युक्त उबटन है , जिसे दिव्य युवतियाँ आदर पूर्वक तुम्हारी सेवा में प्रस्तुत कर रही हैं , कृपया इसे स्वीकार करो …..॥२॥

पश्चादद्देवि गृहाण शम्भुगृहिणि श्रीसुन्दरि प्रायशो गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम्। तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे॥३॥

मराठी अर्थ :

देवि ! इसके पश्चात् यह विशुद्ध आँवले का फल ग्रहण करो शिवप्रिये ! त्रिपुर सुन्दरी ! इस आँवले में प्राय: जितने भी सुगन्धित पदार्थ हैं , वे सभी डाले गये हैं ; इससे यह परम सुगन्धित हो गया है । अत: इसको लगाकर बालों को कंघी से झाड़ लो और गंगाजी की पवित्र धारा में नहाओ । तदनन्तर यह दिव्य गन्ध सेवा में प्रस्तुत है , यह तुम्हारे आनन्द की वृद्धि करनेवाला हो …..॥ ३॥

सुराधिपतिकामिनीकरसरोजनालीधृतां सचन्दनसकुङ्कुमागुरुभरेण विभ्राजिताम्। महापरिमलोज्ज्वलां सरसशुद्धकस्तूरिकां गृहाण वरदायिनि त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे॥४॥

मराठी अर्थ :

सम्पत्ति प्रदान करनेवाली वरदायिनी त्रिपुरसुन्दरी ! यह सरस शुद्ध कस्तूरी ग्रहण करो । इसे स्वयं देवराज इंद्र की पत्नी महारानी शची अपने कर -कमलों में लेकर सेवा में खड़ी हैं । इसमें चन्दन , कुंकुम तथा अगुरु का मेल होने से और ही इसकी शोभा बढ़ गयी है । इससे बहुत अधिक गन्ध निकलने के कारण यह बड़ी मनोहर प्रतीत होती है …..॥४॥

गन्धर्वामरकिन्नरप्रियतमासंतानहस्ताम्बुज-प्रस्तारैर्ध्रियमाणमुत्तमतरं काश्मीरजापिञ्जरम्। मातर्भास्वरभानुमण्डललसत्कान्तिप्रदानोज्ज्वलं चैतन्निर्मलमातनोतु वसनं श्रीसुन्दरि त्वन्मुदम्॥५॥

मराठी अर्थ :

माँ श्रीसुन्दरी ! यह परम उत्तम निर्मल वस्त्र सेवा में समर्पित है , यह तुम्हारे हर्ष को बढ़ावे । माता ! इसे गंधर्व , देवता तथा किन्नरों की प्रेयसी सुंदरियाँ अपने फैलाये हुए कर – कमलों में धारण किये खड़ी हैं यह केसर में रँगा हुआ पीताम्बर है । इससे परम प्रकाशमान सुर्यमण्डल की शोभामयी दिव्य कान्ति निकल रही है , जिसके कारण यह बहुत ही सुशोभित हो रहा है …..॥५॥

स्वर्णाकल्पितकुण्डले श्रुतियुगे हस्ताम्बुजे मुद्रिका मध्ये सारसना नितम्बफलके मञ्जीरमङ्घ्रिद्वये। हारो वक्षसि कङ्कणौ क्वणरणत्कारौ करद्वन्द्वके विन्यस्तं मुकुटं शिरस्यनुदिनं दत्तोन्मदं स्तूयताम्॥६॥

मराठी अर्थ :

तुम्हारे दोनों कानों मे सोने के बने हुए कुण्डल झिलमिलाते रहें , कर – कमल की एक अंगुली में अँगूठी शोभा पावे , कटिभाग में नितम्बों पर करधनी सुहाये , दोनों चरणों में मंजीर मुखरित होता रहे , वक्ष:स्थल में हार सुशोभित हो और दोनों कलाइयों में कंकन खनखनाते रहें । तुम्हारे मस्तक पर रखा हुआ दिव्य मुकुट प्रतिदिन आनन्द प्रदान करे । ये सब आभूषण प्रशंसा के योग्य हैं ….॥६॥

ग्रीवायां धृतकान्तिकान्तपटलं ग्रैवेयकं सुन्दरं सिन्दूरं विलसल्ललाटफलके सौन्दर्यमुद्राधरम्। राजत्कज्जलमुज्ज्वलोत्पलदलश्रीमोचने लोचने तद्दिव्यौषधिनिर्मितं रचयतु श्रीशाम्भवि श्रीप्रदे॥७॥

मराठी अर्थ :

धन देने वाली शिवप्रिया पार्वती ! तुम गले में बहुत ही चमकीली सुन्दर हँसली पहन लो , ललाट के मध्य भाग में सौंदर्य की मुद्रा (चिह्न ) धारण करने वाले सिन्दूर की बेंदी लगाओ तथा अत्यन्त सुन्दर पद्मपत्र की शोभा को तिरस्कृत करने वाले नेत्रों में यह काजल भी लगा लो , यह काजल दिव्य औषधियों से तैयार किया गया है …..॥७॥

अमन्दतरमन्दरोन्मथितदुग्धसिन्धूद्भवं निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे। गृहाण मुखमीक्षतुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै- र्विनिर्मितमघच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम्॥८॥

मराठी अर्थ :

पापों का नाश करनेवाली सम्पत्तिदायिनी त्रिपुरसुन्दरी ! अपने मुख की शोभा निहारने के लिये यह दर्पण ग्रहण करो । इसे साक्षात रति रानी अपने कर – कमलों में लेकर सेवा में उपस्थित हैं इस दर्पण के चारों ओर मूँगे जड़े हैं प्रचण्ड वेग से घूमने वाले मन्दराचल की मथानी से जब क्षीरसमुद्र मथा गया , उस समय यह दर्पण उसी से प्रकट हुआ था । यह चन्द्रमा की किरणों के समान उज्जवल है …..॥८॥

कस्तूरीद्रवचन्दनागुरुसुधाधाराभिराप्लावितं चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिद्रव्यैः सुगन्धीकृतम्। देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै- रम्भःशाम्भवि संभ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके॥९॥

मराठी अर्थ :

भगवान् शंकर की धर्म पत्नी पार्वती देवी ! देवांगनाओं के मस्तक पर रखे हुए बहुमूल्य रत्नमय कलशों द्वारा शीघ्रता पूर्वक दिया जानेवाला यह निर्मल जल ग्रहण करो । इसे चम्पा और गुलाल आदि सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित किया गया है तथा यह कस्तूरी रस चन्दन , अगुरु और सुधा की धारा से अप्लावित है …..॥९॥

कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती- मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वामारादिभिः। पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये॥१०॥

मराठी अर्थ :

मैं कह्लार , उत्पल , नागकेसर , कमल , मालती , मल्लिका , कुमुद , केतकी और लाल कनेर आदि फूलों से , सुगन्धित पुष्पमालाओं से तथा नाना प्रकार के रसों की धारा से लाल कमल के भीतर निवास करने वाली श्रीचण्डिकादेवी की पूजा करता हूँ….. ॥१०॥

मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजः कर्पूरशैलेयजै- र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः। सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये धूपोयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥११॥

मराठी अर्थ :

श्रीचण्डिका देवि ! देववधुओं के द्वारा तैयार किया हुआ यह दिव्य धूप तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ाने वाला हो । यह धूप रत्नमय पात्र में , जो सुगन्ध का निवास स्थान है , रखा हुआ है ; यह तुम्हें सन्तोष प्रदान करे । इसमें जटामांसी , गुग्गुल , चंदन , अगुरु – चूर्ण , कपूर , शिलाजीत , मधु , कुंकुम तथा घी मिलाकर उत्तम रीति से बनाया गया है …..॥११॥

घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्ननयष्ट्यान्वितो महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः। सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे॥१२॥

मराठी अर्थ :

देवी त्रिपुरसुन्दरी ! तुम्हारी प्रसन्नता के लिये यहाँ यह दीप प्रकाशित हो रहा है यह घी से जलता है ; इसकी दीयट में सुन्दर रत्न का डंडा लगा है , इसे देवांगनाओं ने बनाया है । यह दीपक सुवर्ण के चषक (पात्र ) – में जलाया गया है । इसमें कपूर के साथ बत्ती रखी है । यह भारी – से – भारी अंधकारका भी नाश करनेवाला है …..॥१२॥

जातीसौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिद्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः। पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥१३॥

मराठी अर्थ :

श्रीचण्डिका देवि ! देववधुओं ने तुम्हारी प्रसन्नता के लिये यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है , इसमें अगहनी के चावल का स्वच्छ भात है , जो बहुत ही रुचिकर और चमेली की सुगंध से वासित है । साथ हीं हींग , मिर्च और जीरा आदि सुगन्धित द्रव्यों से छौंक – बघार कर बनाये हुए नाना प्रकार के व्यंजन भी हैं , इसमें भाँति – भाँति के पकवान , खीर , मधु , दही और घी का भी मेल है …..॥१३॥

लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम्। सुधामधुरिमाकुलं रुचिररत्नमपात्रस्थितं गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम्॥१४॥

मराठी अर्थ :

माँ ! सुन्दर रत्नमय पात्र में सजाकर रखा हुआ यह दिव्य ताम्बूल अपने मुख में ग्रहण करो । लवंग की कली चुभोकर इसके बीड़े लगाये गये हैं अत: बहुत सुन्दर जान पड़ते हैं , इसमें बहुत – से पान के पत्तों का उपयोग किया गया है । इन सब बी‌ड़ों में कोमल जावित्री , कपूर और सोपारी पड़े हैं यह ताम्बूल सुधाके माधुर्यसे परिपूर्ण है …..॥१४॥

शरत्प्रभवचन्द्रमः स्फुरितचन्द्रिकासुन्दरं गलत्सुरतरङ्गिणीललितमौक्तिकाडम्बरम्। गृहाण नवकाञ्चनप्रभवदण्डखण्डोज्ज्वलं महात्रिपुरसुन्दरि प्रकटमातपत्रं महत्॥१५॥

मराठी अर्थ :

महात्रिपुर सुन्दरी माता पार्वती ! तुम्हारे सामने यह विशाल एवं दिव्य छत्र प्रकट हुआ है , इसे ग्रहण करो । यह शरत्काल के चन्द्रमा की चटकीली चाँन्दनी के समान सुन्दर है ; इसमें लगे हुए सुन्दर मोतियों की झालर ऐसे जान पड़ती है , मानो देवनदी गंगा का स्त्रोत ऊपर से नीचे गिर रहा हो । यह छत्र सुवर्णमय दण्ड के कारण बहुत शोभा पा रहा है …..॥१५॥

मातस्त्वन्मुदमातनोतु सुभगस्त्रीभिः सदाऽऽन्दोलितं शुभ्रं चामरमिन्दुकुन्दसदृशं प्रस्वेददुःखापहम्। सद्योऽगस्त्यवसिष्ठनारदशुकव्यासादिवाल्मीकिभिः स्वे चित्ते क्रियमाण एव कुरुतां शर्माणि वेदध्वनिः॥१६॥

मराठी अर्थ :

माँ ! सुन्दरी स्त्रियोंके हाथों से निरन्तर डुलाया जानेवाला यह श्वेत चँवर , जो चन्द्रमा और कुन्द के समान उज्ज्वल तथा पसीने के कष्ट को दूर करनेवाला है , तुम्हारे हर्ष को बढ़ावे । इसके सिवा महर्षि अगस्त्य , वसिष्ठ , नारद , शुक , व्यास आदि तथा वाल्मीकि मुनि अपने – अपने चित्त में जो वेद मन्त्रों के उच्चारण का विचार करते है , उनकी वह मन:संकल्पित वेदध्वनि तुम्हारे आनन्द की वृद्धि करे …..॥१६॥

स्वर्गाङ्गणे वेणुमृदङ्गशङ्खभेरीनिनादैरुपगीयमाना। कोलाहलैराकलिता तवास्तु विद्याधरीनृत्यकला सुखाय॥१७॥

मराठी अर्थ :

स्वर्ग के आँगन में वेणु , मृदंग , शंख तथा भेरी की मधुर ध्वनि के साथ जो संगीत होता है तथा जिसमें अनेक प्रकार के कोलाहल शब्द व्याप्त रहता है , वह विद्याधरी द्वारा प्रदर्शित नृत्य – कला तुम्हारे सुख की वृद्धि करे …..॥१७॥

देवि भक्तिरसभावितवृत्ते प्रीयतां यदि कुतोऽपि लभ्यते। तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकं जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम्॥१८॥

मराठी अर्थ :

देवि ! तुम्हारे भक्ति रस से भावित इस पद्यमय स्तोत्र में यदि कहीं से भी कुछ भक्ति का लेश मिले तो उसी से प्रसन्न हो जाओ माँ ! तुम्हारी भक्ति के लिये चित्त में जो आकुलता होती है , वही एकमात्र जीवन का फल है , वह कोटि – कोटि जन्म धारण करने पर भी इस संसार में तुम्हारी कृपा के बिना सुलभ नहीं होती …..॥१८॥

एतैः षोडशभिः पद्यैरुपचारोपकल्पितैः। यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात्॥१९॥

मराठी अर्थ :

इति दुर्गातन्त्रे दुर्गामानसपूजा समाप्ता। इस उपचार कल्पित सोलह पद्यों से जो परा देवता भगवती त्रिपुरसुन्दरी का स्तवन करता है , वह उन उपचारों के समर्पण का फल प्राप्त करता है …..॥१९॥

श्री मारुती स्तोत्र आणि अंजनीसुत प्रचंड (Maruti Stotra Aani Anjanisut Prachand) with Audio

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error: ।। नमस्कार जय महाराष्ट्र ।। ( क्षमा करा हे चुकीचे काम होणार नाही )